ट्यूबवेल बोरिंग, जिसे हिंदी में “ट्यूबवेल खुदाई” या “ट्यूबवेल बोरिंग” कहा जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जमीन के नीचे से पानी निकालने के लिए एक गहरा बोर (छेद) किया जाता है। इस प्रक्रिया का उपयोग मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई, पीने के पानी और कृषि कार्यों के लिए किया जाता है।

ट्यूबवेल बोरिंग की प्रक्रिया:

  1. साइट का चयन: सबसे पहले उस स्थान का चयन किया जाता है जहां पानी की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता हो। इसके लिए भूजल सर्वेक्षण और जियोलॉजिकल जांच की जाती है।
  2. बोरिंग मशीन का उपयोग: चुने गए स्थान पर बोरिंग मशीन की मदद से एक गहरा छेद किया जाता है। इस प्रक्रिया को बोरिंग कहा जाता है। बोरिंग की गहराई उस क्षेत्र के भूजल स्तर पर निर्भर करती है।
  3. पाइप डालना: बोरिंग के बाद, एक लोहे या पीवीसी पाइप को उस छेद में डाला जाता है। इसे ट्यूब कहते हैं, जो पानी को जमीन के नीचे से ऊपर तक लाने में मदद करता है।
  4. फिल्टर फिट करना: पाइप के निचले हिस्से में एक फिल्टर फिट किया जाता है ताकि मिट्टी और अन्य कण पानी में न घुस पाएं।
  5. पंप की फिटिंग: पाइप के ऊपरी हिस्से पर एक पानी निकालने वाली पंप मशीन लगाई जाती है। यह पंप मोटर के जरिए पानी को सतह तक लाती है।
  6. पानी की निकासी: पंप के जरिए पानी को बाहर निकाला जाता है, जिसे खेतों में सिंचाई, घरेलू उपयोग या अन्य आवश्यकताओं के लिए उपयोग किया जाता है।

ट्यूबवेल बोरिंग के फायदे:

  • यह एक विश्वसनीय तरीका है जिससे साफ पानी प्राप्त किया जा सकता है।
  • सिंचाई के लिए यह एक स्थिर जल स्रोत प्रदान करता है।
  • यह वर्षा पर निर्भरता को कम करता है, विशेष रूप से सूखे के समय में।

ट्यूबवेल बोरिंग की लागत:

ट्यूबवेल बोरिंग की लागत कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि:

  • भूजल स्तर की गहराई
  • उपयोग की जाने वाली बोरिंग मशीन का प्रकार
  • पाइप और अन्य उपकरणों की गुणवत्ता

इस प्रक्रिया को कुशलता और उचित संसाधनों के साथ किया जाता है ताकि बोरिंग सफल हो और लंबे समय तक उपयोगी रहे।

सुरक्षा एवं रखरखाव:

ट्यूबवेल बोरिंग के बाद नियमित रखरखाव जरूरी है, ताकि पंप सही तरीके से काम करता रहे और पानी की गुणवत्ता बरकरार रहे।

बोरिंग के प्रकार:

बोरिंग तीन प्रकार की होती है

1.        लोहे की बोरिंग लोहे की बोरिंग में लोहे के पाइप डाले जाते है इस बोरिंग की लाइफ़ 5 से 10 साल होती है क्योंकि लोहे के पाइप में जंग लगना स्टार्ट हो जाती है और गल कर उसकी लाइफ खत्म हो जाती है यह सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह से करवाई जाती है

2.        प्लास्टिक के पाइप डाले जाते हैं जिसकी लाइफ औसत होती है लगभग 10 से 15 वर्ष और यह पाइप सड़ के ग़ल जाते हैं खराब हो जाते हैं इसमें सबसे ज्यादा रिस्क रहता है किसानों का इसमें नुकसान भी होता है हालांकि यह सरकारी और व्यक्तिगत रूप से करवाई जाती है

3.        इसकी बोरिंग में सीमेंट के पाइप डाले जाते हैं जिनकी लाइफ लगभग 25 वर्ष से अधिक होती है जो मजबूती में लोहे के बराबर और सडने गलने की कोई भी गुंजाइश नहीं रहती है इसलिए इनकी लाइफ ज्यादा होती है और सबसे अच्छी बोरिंग इसकी ही मानी जाती है हालांकि यह सरकार की तरफ से नहीं की जाती है यह व्यक्तिगत रूप से किसान अपने खेतों पर करवा सकता है इसमें कोई सब्सिडी भी नहीं होती है